उझानी(बदायूं)। बांके बिहारी कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय उझानी की राष्ट्रीय सेवा योजना सात दिवसीय विशेष शिविर के चतुर्थ दिवस पर एनएसएस के स्वयंसेवियों ने ग्राम जिरौली में अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया। एनएसएस के कार्यक्रम अधिकारी नवीन कुमार ने कहा कि जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है, इसको सहेज कर रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमे अपनी मातृभाषा एवम संस्कृति पर गर्व है।
द्वितीय सत्र में अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवसवपर गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें संस्कृत प्रवक्ता डॉ शरद अरोरा ने कहा कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। “गाय का दूध पौष्टिक है लेकिन कभी मां का दूध नहीं हो सकता।“ घर पर मातृभाषा बोलने वाले बच्चे मेधावी होते हैं। बीएड प्रवक्ता अंजू सक्सेना ने कहा कि विश्व में मौलिकता का ही महत्व है।
उन्होंने कहा कि विश्व में आज भी भारत की पहचान यहां की भाषा में लिखित उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, योगसूत्र, रामायण, महाभारत, नाट्यशास्त्र आदि से है जो मौलिक रचनाएं हैं। विश्व में मौलिकता का महत्व है, माध्यम का नहीं। इसलिए यदि स्वतंत्र भारत में मौलिक चिन्तन, लेखन का ह््रास होता गया तो उसका कारण ’अंग्रेजी का बोझ’ है। मौलिक लेखन, चिन्तन विदेशी भाषा में प्रायः असंभव है। संचालन छात्रा निशा एवं शिखा ने किया।