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​जलवायु परिवर्तन पर सबसे अहम वार्ता: सीओपी26 क्या है और यह इतना अहम क्यों है?

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन सीओपी26 के लिए ब्रिटेन के ग्लासगो की प्रतीकात्मक तस्वीर
Up Namaste

साल 2015 के बाद से जलवायु परिवर्तन पर अब तक की सबसे अहम बैठक एक दिन बाद होनी है, लेकिन सीओपी26 का वास्तव में क्या मतलब है और आखिर, यह दुनिया के लिए यह इतनी अहम क्यों है, जो सबकी नजरें ब्रिटेन के ग्लासगो की ओर लगी हैं?

सीओपी26 जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के सदस्यों को 26वां सम्मेलन है, जो 31 अक्तूबर से लेकर 12 नवंबर के बीच ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित हो रहा है। इस सालाना बैठक में यूएनएफसीसीसी के 197 सदस्य जलवायु परिवर्तन पर ठोस कार्रवाई करने के लिए एकजुट होंगे।

इस सालाना बैठक में राष्ट्र प्रतिनिधि जलवायु परिवर्तन शमन (पृथ्वी का तापमान बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी), जलवायु परिवर्तन के कारण अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय प्रभावों से निपटने और विकासशील देशों के जीवाश्म ईंधन के कटौती के प्रयासों में मदद करने के लिए वित्तपोषण बढ़ाने जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की पहली जलवायु वार्ता साल 1995 में जर्मनी के बर्लिन में आयोजित की गई थी। संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के 197 देशों ने वर्ष 2015 में आयोजित ऐतिहासिक सीओपी21 सम्मेलन में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह एक ऐतिहासिक समझौता था, जिसके तहत पेरिस में सदस्य देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाकर प्री-इंडस्ट्रियल लेवल पर ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की कसम खाई और तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे बनाए रखने का लक्ष्य हासिल करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर योगदान निर्धारित किया गया था।

सीओपी26 कब और कहां आयोजित होगा?
इस साल, यह बैठक ब्रिटेन के ग्लासगो में 31 अक्तूबर से लेकर 12 नवंबर के बीच आयोजित होगी। इसकी अध्यक्षता संयुक्त रूप से ब्रिटेन और इटली करेंगे, जोकि सम्मेलन से पहले अंतिम मंत्रिस्तरीय बैठक के साथ ही जलवायु परिवर्तन पर यूथ फोरम की मेजबानी कर रहा है। यूथ फोरम दुनिया भर के युवा कार्यकर्ताओं और इटली, ब्रिटेन व संयुक्त राष्ट्र के राजनीति नेताओं को एक साथ लाया है।

सीओपी26 क्यों अहम है?
इस साल, 2015 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से जलवायु परिवर्तन पर अब तक की सबसे अहम वार्ता होने जा रही है, इसमें ग्लोबल क्लाइमेंट एक्शन पर फैसला किया जाएगा। सभी सदस्य देशों को अब समझौते के कार्यान्वयन के लिए एक नियम पुस्तिका पर सहमति बनने की पूरी उम्मीद है। इसमें प्रत्येक देश के कार्बन उत्सर्जन को मापने, रिपोर्ट करने और समय के साथ—साथ अपने लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाए जैसे विषयों पर नियम बनाना शामिल है।

ग्लासगो में उस जगह का हवाई दृश्य, जहां सीओपी26 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन होना है। सीओपी26 स्कॉटिश इवेंट कैंपस में क्लाइड नदी के पास होगा।

दिशानिर्देशों का पहला संस्करण- जिसे ‘रूलबुक’ के नाम से जाना जाता है, पिछली बैठक में तैयार किया गया था, लेकिन अभी तक सभी देश अहम बिंदुओं पर एकमत नहीं हो पाए हैं। महत्वपूर्ण बिंदुओं में शामिल है कि उत्सर्जन में कमी लाने वाले टोकन का व्यापार कैसे करें, वो भी यह सुनिश्चित करते हुए कि वे दोहरी गणना नहीं हैं, जिसका बजट बिक्री और खरीद बजट दोनों की ओर से निर्धारित किया जाता है। पेरिस समझौते की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इस तरह का विवरण सीओपी25 में दिए गए हैं या नहीं। हालांकि, यह एक परिभाषा की तरह लग सकती है।

सीओपी26 सम्मेलन में, सभी सदस्य देशों से यह अपेक्षा की जाएगी कि वे अपनी जलवायु महत्वकांक्षाओं को बढ़ाएं, मौजूदा जलवायु प्रतिबद्धताओं या फिर राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारत योगदान यानी नेशनली डिटरमिनेट कंट्रीब्यूशन (एनडीसी) पर तेजी से काम करें। चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और ब्रिटेन ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए पहले से ही समय सीमा​ निर्धारित कर ली है, जिसका अर्थ है कि वे जितना अवशोषित करने में सक्षम हैं, उससे कम उत्सर्जन करेंगे। वहीं भारत समेत अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं उत्सर्जन की वृद्धि में कमी लाने के लिए क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ रही हैं।

सीओपी26 के दक्षिण एशिया के लिए क्या मायने हैं?
दक्षिण एशिया में दुनिया की एक चौथाई आबादी रहती है और कुछ ऐसे देश जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं। दक्षिण एशियाई देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते अपरिवर्तनीय पर्यावरण परिवर्तन, सूखा, बाढ़, हीटवेव, चक्रवात, असामान्य बारिश और हिमालय जैसे पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में परिवर्तित जल चक्रों से सबसे अधिक जोखिम में हैं। दक्षिण एशिया जलवायु परिवर्तन से प्रभावित प्रवास और विस्थापन से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में से एक है।

ग्लोबल वार्मिंग को रोकना उन समुदायों के लिए जिंदगी और मौत का सवाल है, जो मौसम संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और उनके पास आर्थिक संसाधनों की भी भारी कमी है। ज्यादातर विकासशील देशों की तरह दक्षिण दशियाई राष्ट्र शमन और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय सहायता के लिए अपने समृद्ध समकक्षों के भरोसे हैं और पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा कर रहे है। सीओपी26 में, दक्षिण एशियाई नेता अपनी अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु प्रतिज्ञाओं को प्रस्तुत करते हुए अमीर देशों को जवाबदेह ठहराएंगे। साभार: www.thethirdpole.net

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